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________________ बनवास कारण - - - ( राम का. लक्ष्मण से कहना ) गाना नं०.३३ मत जावो मेरे संग भाई लखन ॥ टेर।। चौदह वर्ष हमे वन में रहना, मान हमारा वीरन कहना। ' वह है जगल बियाबान कठिन ॥१॥ । भेप सादगी तन पर धारू, प्रण किया सो कभी न हारू। जर बख्तर मै सब उतारे वसन ॥३॥ दोहा लक्ष्मण ने ऐसे सुने, रामचन्द्र के बैन । शीस झुका कर जोड़ कर, लगा इस तरह कहन ।। लक्ष्मण-आज्ञा आपकी न मानू', मेरा यह दुष्ट विचार नहीं । पर विरह आपका सहने को, भाई मै भी तैयार नहीं । जिस जगह राम वहाँ लक्ष्मण है, विन राम मेरा नहीं जीना है । इस पुरी अयोध्या का मुझको, नहीं माता खाना पीना है। किसी शून्य चित्त को समझाने मे, निष्फल समय बिताना है। कृपण से कोई करे याचना, तो वहां से क्या पाना है। कर्ण वधिर को सुरताल सहित, निष्फल गायन सुनाना है । वृथा क्यों अन्धे के आगे, नयनो से नीर बहाना है ।। बस ऐसे ही लक्ष्मण को समझाने में, समय बिताना है। अव लाख कहो या करोड़, आप बिन मेरा नहीं ठिकाना है । चलो देर मत करो संग, चलने को मैं हूं खड़ा हुआ। यह धनुषवाण कर सह शस्त्रों के, बख्तर तन पर पड़ा हुआ ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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