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________________ वनवास कापरण दोहा छुटे बाण ज्यों धनुष से, त्यो शूरवीर की बात । वापिस फिर लेते नही, जैसे दिन गत रात || दोहा (राम) ܕܕ रवि शशि सागर दरे, व्योम न दे अवकाश 1 प्रण से माता मै नाटरू, जाय करू बनवास ॥ शूरवीर का पुत्र नहीं, दुनियां से दहलाता हूं | जन्म लिया तेरे माता, मैं क्षत्रिय कहलाता हूं | मरने का नही भय मुझको, प्ररण का जितना खाता हूं । रघुवंशिन को आज नहीं बटा लाना चाहता हूं ॥ गाना नं० २१ (राम का कौशल्या से कहना) मुझे माता बनवास जाना पड़ेगा । वचन यह पिता का, निभाना पड़ेगा ||१|| नहीं आती युक्ति, नजर कोई दूजी । यमाता तुझे मन टिकाना पड़ेगा ||२|| चनो का यह क्या दुख चाहे जान जावे । जो प्रण है पिता का, निभाना पड़ेगा ||३|| पिता ऋण न उतरे, धर्म कैसे हारू । यह भव भव से दुख्न फिर उठाना पड़ेगा ॥ ४ ॥ क्षमा दोष करके, धरों हाथ सिर पर । कहो 'पुत्र जा वन' सुनाना पड़ेगा ||५|| २४३ गाना नं० २२ (रामचन्द्र और कौशल्या का प्रश्नोत्तर रूप) तर्ज - (लावणी) वह जबां नही बेटा, मेरे इस मुख मे 1 किस तरह कहूं छोना, जाओ बन दुख मे ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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