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________________ १६ रामायण AMAVA AAAAAA दुःख दर्द मे कभी आनकर, पानी तक न प्यावे । बोली की भर मारे गोली, जख्मी जिगर पर तीर चलावे ||३|| क्षमा करो सब दोष मेरा, जो बना और वन आवे | मानिंद बकरी शेर नार से, शुक्ल मेरा मन घबरावे ||४|| दौड़ झुर्रियां पड़ गई जिस्म पर, दांत हुए सब दूर । यौवन सारा खो दिया, रहा बुढापा घूर ॥ लगा कांपने शीस श्वास पर, श्वास निरंतर आते हैं । हो गये हाथ मुर्दे समान, दो चरण मेरे थक जाते हैं 11 पाप किया पिछले भव में, अब भी न धर्म कमाया 1 अमोल समय भ्रम जाल मे फंस कर मैंने वृथा गवाया है || -*** दशरथ का वैराग्य दोहा व्यथा सुनकर वृद्ध की, दशरथ किया विचार | धिक् ऐसे संसार को, सिर पर डारो छार || विरक्त हुआ मन दशरथ का, बूढ़े पर उपकार किया । आयु पर्यन्त भोगे सुख पूर्ण, ऐसा नृप ने दान दिया || फिर सोचा यही अवस्था, एक दिन मुझ पर भी आवेगी । मनुष्य जन्म अनमोल समय, यह बात हाथ नहीं आवेगी ॥ दौड़ पुण्यवान् को झट मिले जैसा होवे विचार | समोरे बाग में, सत्य भूति अनगार |
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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