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________________ २१२ रामायण जनक के भाई कनक की शिक्षा गाना नं. १० तर्ज-ताल त्रिताल बेटी सुन सीता ज्ञान मेरा, तुम इसे भूल मति जाना ॥ स्थायी ॥ प्रीतम अवतारी राम तेरा, तू फूल कली यह भंवर तेरा॥ है रुतबा आला जबर तेरा, रघुवर चरणो मे ध्यान लाना ॥१॥ मन्त्र तंत्र धागा तबीज, ये झूठी है तीनो चीजे । इनको बरते बेतमीज, तू इन पर ध्यान मति लाना ॥२॥ श्री नमोकार पद नित्य सीता, तू समझ इसको प्रेम गीता। तीन लोक उसने जीता, नमोकार ज्ञान जिसने माना ॥३॥ 'यह नष्ट करे दुःख दायन को, ला प्रेम पढ़ो इस गायन को। इस भव पर भव सुखदाई, शुभ ध्यान शुक्ल भगवन ध्याना ॥४॥ दोहा रथ शकट हस्ती पीनस, अश्व दिये शृगार। मणि मुक्ता माणक दिये, जिनका नहीं शुम्मार ॥ जिनका नहीं शुम्गर, जनक ने दिया बहुत भूपण गहणा। बिदा बाद सब कहें :सहेली, अब नही चित्त लगता बहना ।। बिन सीता लगे मिथिला सूनी. मुश्किल हो गया अब रहना। आज बिछड़ गई हम से सीता, कोकिल वैनी मृग नैना । दौड छोड़ गई जन्म भूमि को, जा रही ससुर भूमि को। अब सीता बिन चित्त लगेना, देख देख कर वास भवन को, भर भर आवे नैना ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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