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________________ सीतास्वयम्वर २०३ verncom जनक लगा ताव मूछों पर बैठे, आन स्वयंवर घर मे । अच्छा है कही मरो डूबजा, पानी चूल्लू भर मे ॥ क्षत्रिय कुल की लाज रक्खे, कोई आता नही नजर मे । आन चढ़ावो धनुष यदि, रखते कुछ जोश जिगर मे ॥ दौड़ बनों सभी जनाने, भेष छोड़ो मरदाने । माता का दूध लजाया, रल मिल के क्षत्रिय कुल को क्यों बट्टा आज लगाया ।। दोहा (लक्ष्मण) जनक भूप की बात सुन, कोपा दशरथ नंद । कहे लक्ष्मण श्री राम से, बांका वीर बुलंद ।। अय भाई ? नप जनक ने, कही यह अनुचित वात । सूर्य के होते हुए दिन को समझी रात । देवो आज्ञा धनुष चढ़ाऊं जरा देर नहीं करता। बोली की गोली सही समझलो सिर्फ आपसे डरता ॥ वरना एक पलक का भी अरसा न जनाब गुजरता ॥ एक धनुष क्या और कहो, सब चढा किनारे धरता ।। (लक्ष्मण का कथन) तर्ज-व० त बोली की गोली से घायल किया, क्षत्रिय कोई आया इसको नजर ही नहीं। सूर्य वंशी हैं बैठे प्रबल सामने, इसको इतनी भी देखो खबर ही नहीं। कोई क्षत्रिय नहीं, अब कहा सो कहा, आगे लाना जबां पे जिकर ही नहीं।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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