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व्यन्तरी शीघ्र ही वहां से चले। इतने मे ही उस पुरुष की वह असली स्त्री जा दूर ही से इस सारी बात को देख रही थी, हांपते कांपते उनके पास आई और बोली-अजी मुझ अनाथिनी को इस निर्जन बन मे आप कहां छोड़ रहे हो। आपके साथ जो
स्त्री लग गई है वह आपकी स्त्री नही है। अब तो व्यन्तरी ने __ अपने वचनो को सत्य सिद्ध करने के लिए समय विचारा और
तत्काल ही उस पुरुष के प्रति बोली-मैने जो कहा था वही हुआ ना । अब भी यहां से जल्दी निकल भागो नही तो जीना भी कठिन हो जायगा । इस आश्चर्य वाली बात को देखकर वह बड़ा भयभीत हो गया एवं असमजस में पड़ गया। वह वहां से चलने की तैयारी ही मे था कि इतने मे उसकी असली स्त्री ने उस व्यन्तरी का हाथ पकड़ लिया, तब तो परस्पर वाद विवाद करने लग पड़ी कि मैं हूँ मुख्य स्त्री और दूसरी कहती है कि मैं हूँ मुख्य स्त्री । ऐसा कहकर हाथा पाई करने लगी, अत मे वह पुरुप न्याय की याचना करने के लिये उन दोनो को राजा के पास ले गया और सारा वृत्तान्त कह सुनाया, उनका रंग-ढग बोल एक सा देखकर राजा भी आश्चर्य मे पड़ गया कि न्याय क्या दया जाय । अन्त मे राजा ने रानी को यह बात कही दूसरे दिन रानी ने उसका ठीक न्याय कर दिया ।
भद्र नाम का बलदेव इन्हीं का समकालीन था । द्वारावती के राजा रुद्र और उनकी रानी सुभद्रा उन के माता पिता थे। स्वयंभू नामक वासुदेज का जन्म इसी राजा की दूसरी रानी