SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भामण्डल का अपहरण १८२० -------mo urname भामंडल का अपहरण दोहा पिंगल का जो जीव था, पहिले स्वर्ग मंझार । अवधिज्ञान से एक दिन, देखा दृष्टि पसार ।। देखा दृष्टि पसार देव के, क्रोध बदन में छाया । पूर्व वैरी समझ आन, भामण्डल तुरन्त उठाया। देऊ इसको मार, देव के मन मे यही समाया। । राजकुमार का पुण्य प्रबल, यो असुर सोच मन लाया ।। छन्द मारू यदि इस बाल को, महापाप लगता है मुझे। छोडू यादे जीता इसे, यह भी नही जचता मुझे। बाल हत्या है बुरी, रुलता फिरू संसार मे। कौन सा अब ढग करू', जिससे लेऊनिज खार* मे ।। रकचू गिरी बैताव्य पर, वहाँ से न कोई लायगा। खा जायगा कोई श्वापद , या स्वयं मर जायगा ।। चन्द्रगति विद्याधर का भामण्डल को उठाना दोहा देव वहां से चल दिया, रख शिला पर लाल । उधर भ्रमण को आ गया, रथनुपुर भूपाल । चन्द्रगति रानी समेत, विमान बैठ कर आया है। जब देखा बच्चा पर्वत पर, राजा मन मे हर्षाया है। लिया उठा कर कमलो मे, तो खुशी का न कोई पार रहा । दे दिया गोद मे रानी के, घड़ियों-तक देता प्यार रहा ॥ * वैर हिंसक पशु बच्चा
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy