SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हनुमानुत्पत्ति १४३ www rrrrrrrrrr स्वादिष्ट अचार सब सब मुरब्बे भी लाकर धारे। पापड़ कई प्रकार के फिर सेवरु दाल परोसे ।।२।। फल-फूल मेवा कई मिश्रित पक्का तैयार किया । अरवी भिन्डी मटर कचनार केला तोरी घिया। व्यजन छत्तीस साग कस्तूरी भिंगार साग। जीमन समय साज बाज साथ गावे मंगल राग । शोभन सभी फर्नीचर राजा का सरावे भाग । भूपाल ने बड़ी उमंग से क्या कहूं जो माल परोसे ॥३॥ पीवे दूध मलाई जामे मिश्री दई है डाल । जीम पकवान कर धोय के हुवे तैयार । खाएँ मुख वासना सब शोभा को रहे निहार जी। राजा जी का महल इन्द्र महल से अधिक मान । क्यो कि दृढ़ धर्मी उपकारी अति पुण्यवान । नृप राज ने सन्मुख आनके, फिर सब को भाल परोसे ||४|| क्षेम कुशल वर्ती वहा, सभी प्रसन्न महान् । फिर वहां से प्रस्थान कर, पहुंचे निज स्थान ।। आठ वपे का जब हुवा, हनुमान् सुकुमार । गुरुकुल मे पढ़ने लगे, विद्या ही गुण सार । सोलह वर्षे पढ़ी विद्या, सब बहत्र कला का ज्ञान हुवा। शस्त्र कला क्या शास्त्र वेत्ता, शूर वीर बलवान् हुवा ॥ वरुण भूप दश कन्धर का, फिर से युद्ध अपार हुवा । आज्ञा पा दशकन्धर की, नृप पवन जय तैयार हुवा ।। दोहा पवन जय प्रति सूर्य, लगे युद्ध मे जान । सम्मुख आ हनुमान ने, करी चरण प्रणाम ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy