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हनुमानुत्पत्ति
पहिले तो कुछ आशा थी, पर अब निराश हो जावेगी। रण से वापिस आने तक, वह अपने प्राण गमावेगी ।।
चौपाई उसी समय प्रहसित से बोले, भाव सभी जाने के खोले । सन्तोष बिना मर जावे नारी, है पतिव्रता राजदुलारी ।।
दोहा दोनों वैठ विमान मे, आये तुरत आवास । रानी दुख मे ले रही, लम्बे-लम्बे श्वांस ।।
दोहा प्रहसित तब कहने लगा, रानी खोल कपाट । कुमर पवन जय आये है, लम्बी करके बाट ।। रानी तब कहने लगी, कौन है हटो पिछाड । पहिरे है चारो तरफ, तू कहां महल मंझार ।। कौन तू महल मंझार, पति मेरा संग्राम गया है। छल बल करता कौन, मेरे तू महलो मे आया है। पकड़ा दूगी अभी यदि, मरना पसन्द आया है। बारा वर्ष हो गये पति ने, चरण नहीं पाया है ।
दोहा नाम ना सुनना चाहते, कहो, कैसे घर आते । मुझे तू क्यो बहकावे, भाग्यहीन मै कहाँ पति परमेश्वर दर्श दिखावे।।
दोहा रानी जी निश्चय तुम्हें, भ्रम और संताप ।
बैठ झरोखे स्वामी के, दर्शन करलो आप ।। दर्शन करलो आप प्रहसित, मै मित्र हूँ स्वामी का। तू है मेरी मात सती, मै सेवक महारानी का ॥