________________
हनुमानुत्पत्ति
mmmmmmmmmmm एक आसरा चरणो का है, दोष क्षमा सब कर देना । विजय आपकी हो रण मे, फिर दासी को दर्शन देना ।।
आप क्षमा के है सागर, और नारी मूद अजान हूं मैं । बार बार तुम चरणो में, इक माँग रही क्षमादान हूँ मै ।।
दोहा पवन कुमर ने रोप मे, धक्का दे किया बाद । उस अपराध का अब, तुम्हे आने लगा स्वाद ॥ उस समय क्या रसना गहने थी, अब चपर २ जो चलती है। बेइज्जती सुन खुश होती थी, अब धरणी शीश मसलती है ।। ये क्या चरित्र फैलाया है, ऊपर से नेम दिखाती है। जैसे तूने किये काम यह, उसका ही फल पाती है ।।
दोहा इतना कह कर कुमर ने, दीना बिगुल बजाय । मान सरोवर जाय के, डेरा दिया लगाय ।। तिरस्कार पति ने किया, रानी चित्त उदास । बैठ महल मे ले रही, लम्बे लम्बे श्वांस ।।
__अजना का गाना नं. ३२ दिया दुख यह कर्म ने भारा, हुवा चिमुख कन्त हमारा । (ध्र व) कोई दोष नजर नहीं आता, ना भेद कोई बतलाता जी ॥ अब यही फिक्र एक भारा, हुवा विमुख कन्त हमारा। मैने पिछले भव के मांही, बड़े पाप किये दुःखदायी जी ।। दम्पति के मन को फाड़ा, हुवा विमुख कन्त हमारा । जो सुनेगी मात हमारी, दुख पायेगी अति भारी जी ॥ मैंने किसके पल्ले डारा, हुवा विमुख कन्त हमारा। पीहर पूछेगी सखियां मेरी, दुःख सुख की बात घनेरी जी।