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________________ वीर ब्राध mmmmmmmmm बाकी मेरे तन के गहने जो है डिब्बे मे भरे हुए। वह सभी आज से है तेरे, हीरे पन्नो से जड़े हुए ॥ दासीपन का शब्द आज से, कहना सदा भुलाऊंगी। अब समय समय पर कारणबस, सम्मान से तुम्हे बुलाऊंगी। कुल का यही दीपक है, और यही एक निशानी है। प्रतीत हुआ लक्षणो से भी, लम्बी इसकी जिन्दगानी है ।। पालन इसका करे फेर, निश्चय आशा पूरी होगी। पुत्रवती कहाऊगी, जिस दिन चिन्ता चूर्ण होगी। उस दिन की मुझे प्रतीक्षा है, जिस दिनको यह दिल चाहता है। उत्साहियो के उत्साहो को, लख शंक काल भी खाता है ।। तुझ पर ही विश्वास मुझे, तू ही मेरी सहकारण है। तेरा मेरा देश का होगा, इस से दुःख निवारण है। दोहा (सुकर्मा) ग्रहण किया नित्य आपका, अन्न नमक सब चीज। जिस के कारण आपके, अर्पण है यह कनीज ॥ . शाबास तुझे अय क्षत्राणी, अभ्यास यही होना चाहिये । मरना तो सबने एक दिन है पर गौरव ना खोना चाहिये.।। और जहां तक हो सुकृत का, बीज सदा बोना चाहिये । अज्ञान रूप मल को जिनवाणी, वारी से धोना चाहिये ।। ... गाना न०१६ (तर्ज-आज इनकी दुर्दशा हा ) यहां दान किसको देके निज हृदय खिलाऊ किसतरह। निग्रन्थ गुरु मिलता नही, तब व्रत फलाऊ किस तरह ।। सम्यक्त्वी , यहॉ.पर नही, भूखा न कोई अनाथ है। , उपकार कुछ कर से किये बिन, आज खाऊ किस तरह ।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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