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त्यनी अपेक्षायें तेर उपवास याय. फरी त्रीजी दीवा लीनी श्रमावास्याथी बीजी दिशिनी अपेक्षायें तेर उप वास करवा, माटे प्रत्येक महिनानी अमावास्यायें एकेको उपवास करे. एवी रीतें चार दिशाना बावन चैत्य श्री सात वर्षने वे महीने ए तप पूर्ण याय. हमणांना काले दीवालीनी अमावास्या तथा पूनम नावे वे उपवास करी एक वर्षमां पण ए तप पूर्ण करे बे. नजमणे नंदीश्वर हीपनुं मंगल बनावे, पूजा करावे, ज्ञानपूजा करे, गुरुनक्ति करे, मंगलनी पूजा करे, बावन बावन फल नालीयेर पूगी फलादिक व स्तु ढोके, बावन्न लोगस्सनो काउस्सग्ग करे.
२० पुंमरीकनामें तप कहे बेः- चैत्री पूनमना दिवसें पुंमरीक गणधरने केवलज्ञान उपनुं बे, माटे ए दिवसें एक उपवास अथवा एकासादिक तप करियें. यथाशक्तियें श्रीपुंमरीक गणधरनी पूजापूर्वक जक्ति क
यें. ए तप सात वर्ष पर्यंत करवानुं कहे बे. उजम ऐ नगद पुत्रिकाने अथवा अन्यने अगणित मंम क जमाडवा, साधु साध्वीने उधो, मुहपत्ति, वस्त्र त था गणित मंमक वहोराववा, सात घरने विषे अगणित मंमकनी लाणी करवी.
२५ प्रनिधि तप कहे बे:- घर देरासरें श्रीजिन देव पागल अथवा बीजा कोइ उत्तम स्थानकें चित्र स हित घट या पियें. पी तेमां प्रतिदिवसें मूठि जर चोखा नाखतां जश्यें ने प्रति दिवसें पोतानी शक्तिने अनु