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थाय. एवी चार परिपाटीयें ए तप पूर्ण थाय. तेवारें पांच वर्ष, नव मास ने खदार दिवसनी संख्या थाय d. उजमणे रत्नमय हार यापवो ॥ इति ॥
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१२ कनकावलि तप कहे बेः- ए पण सुवर्णमय मणिथी उत्पन्न ययेनुं नूषण होय तेने कनकावली कहीयें. एनी थापना पण रत्नावलिना तपनी पेठेंज करवी; परंतु एटलुं विशेष जे मात्र दाडिमना पुष्प अने पदकने विषे जे त्रण त्रण उपवासनी स्थापना करीं बे, ते स्थानकें यामां बे वे उपवासनी स्थापना कर वी. एनी पण चार परिपाटी करतां पांच वर्ष बे मास ने हावीश दिवस उपर थतां ए तप पूर्ण थाय उज मणे सुवर्णमय हार ने सुवर्ण अक्षर मय पुस्तक करवां. इहां प्रथम लघु सिंह निःक्रीडित तथा महासिं हनिःकीडित नामा जे तप कयुं, तेमां जे प्रमाणें पा रानो विधि कह्यो, तेहज विधि ए मुक्तावलि तथा रत्नावलि ने कनका वलि ए त्रणे तपने विषे जाए वो. ए पांचे तपनो पारणासंबंधि विधि सरखो जावो.
१३ हवे प्रतिमा संबंधि तप कहे :- प्रथम. एक उपवास पढी वे, त्रण, चार घने पांच, एम पन्नर उपवासें एक लता थाय. हवे बीजी उलीमांत्र ए, चार, पांच, एक, बे, एवं पन्नर उपवास थाय. तथा त्रीजी उनीमां पांच, एक, बे, त्रण, चार एम पन्नर उपवास थाय, तथा चोथी लतामां बे, त्रण, चार, पांच ने एक एवं पन्नर उपवास थाय. तेम