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माटे द्यावीश लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो, अथवा चारित्रना गुण श्राश्रयी सत्तर लोग्गस्स नो काउस्सग्ग करवो.
१६ ' लमो जिलाएं ' ए पदनुं गुणं बे हजार गु एवं, देव, गुरु, तथा पोसना करनार वडा प्र मुखनुं वेयावच्च करवुं, सत्तरनेदी पूजा करवी, देव आागल साथीया दश करवा, जिनवर था दिक दशना वेयावच्च श्राश्रयी दश नेद बे, माटे दश लोग्गस्सनो काउस्सग्ग करवो.
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१७ ' रामो चरणस्स ए पदनुं गुणं वे हजार गु एवं इहां सर्व समाधिविशेष समताभाव ना तां खरूं सामायिक करीयें, बीजाने करावीयें, काउस्सग्ग लोग्गस्स अगीयारनो करवो. १८' रामो नापस्स ए पदनुं गुणणुं वे हजार गु वं, ए पद खाराधन करतां नवा नवा ग्रंथ श्रव श्य जावा. पूर्व पूर्व ज्ञान नावं, जो वधु न जाय तो वे चार गाथाज जावी. नव नवा तवनादिकनी रचना करवी, श्रुतज्ञाननुं श्राराध न कर, एमां काउस्सग्ग पांच लोगस्सनो करवो. १५ ' एमो सुयनापस्स' ए पदनुं वे हजार गुणं गुणवं, ए पद राधतां थकां साधु, साधवी, श्रावक, श्राविका, ए रीतें चतुर्विध श्रीसंघनी न क्ति करवी, यथाशक्तियें पुस्तकोनी पूजा करवी. पुस्तकना वीटांमणां २०, पाठां २०, चाबखी