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॥ अन्ना कोह मय माण, लोह माया रश्य रश्य || निंदा सोग अलिय वयण, चोरिया महर जयाय ॥ १ ॥ पाणीवह पेम कीला, पसंग हा साय जस्स ए दोसा ॥ श्रहारस विपराठा, नमामि देवाहिदेवं तं ॥ २ ॥ एहवा देवाधिदेव, सुरासुर विहितसेव, सर्वज्ञ नगवंत, जगन्नाथ जगज्जीवना तारक, कुगति मार्ग निवारक, निरीह निरहंकार, निःसंग निम शांत दांत करुणा समु, विश्वोपकार सागर, अनंत गुणना श्रागर, चोराठ इंना पूजनी क, वज्रकपननाराचसंघयण, समचतुरस्र संस्थान, एक हजारने या वर प्रधान पुरुष लक्षणना धरण हार, समुनी परें गंजीर, मेरुपर्वतनी परें धीर, शंखनी पेरें. निरंजन, वायुनी परें प्रति ब६ विहार, प्रकाशनी परें निरालंब, जीवनी परें अप्रतिहतगति, कूम्र्मनी परें गुप्तेंयि, खड्गी जीवना शृंगनी परें एक, नारंग पंखीनी परें अप्रमत्त, सिंहनी परें दुर्धर्ष, तृप जनी परें दार सहस्स सीलांगरथना धुरंधर धोरी, चंदमानी परें सौम्यकांति, सूर्यनी परें सतेज, पंखीनी पेरेंविप्रमुक्त, कुछी संबल, वसुंधरानी परे सर्व सहे, नंतज्ञान, अनंतदर्शन, चोत्रीश प्रतिशयें करी संयुक्त पां त्रीश नापा गुण परिकलित, अष्ट महा प्रातिहार्ये विरा जमान, पादपीठिकासहित सिंहासनासन, बत्रत्रय चामर शोभायमान, पूंठ पाउल नामंगल दीपे, तेजें करी श्रीसूर्यने जपे, श्री अरिहंत उपर अशोक वृद
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