SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६६३ ) बेसाडे. लोढाना घणा प्रकारना घात करे. वांसला यें करी बेदे, छत पर हार मूके. उष्ण तेलमांहे तजे; कुंत, नालामां शरीरने प्रोवे, तथा अमिनी ज हिमांदे शेके, घाणी मांहे पीले, करवतें कर बेदी नाखे; काक, घुड़, कुतरा ने सिंह प्रमुखें विकू afने कदर्थना करावे, वैतरणी नदीमांहे ते नारकीने जोजे, सिपत्र वनमांहे वेश करावे, तप्तवेलुमां हे दोडावे. एवी विविध प्रकारनी वेदना उत्पन्न करी नारकीने दुःख खापे पडी वज्रमय चंचूर्येकरी तें नारकीने पक्षीयो तोडे, तथा कांही धरतीयें पड्या रहेजा नागने वाघ चूंटे, खाय एवा ते परमाधामी अधम, महा पापिष्ठ, क्रूरकर्मा के जेमने पंचानि प्र मुख कष्ट क्रिया करवा थकी नपनुं एवं जे क्रूर सुख बे एवा असुर परमाधामी ते कदर्थ्यमान एवा नार की मांहोमां पाडा, कूकडा ने मेंढानी पेरें जू ऊता देखी युद्ध प्रेक्षक मनुष्यनी पेरें ते परमाधामी हर्ष पामे, अट्टहास्य करे, चेलोत्देप करे, पटह व गाडे, दादरी वजावे, जेम अहियानां लोको नाटक देखी खुशी याय, तेवा परमाधामी त्रणे जातनी कढ़ ना नारकी ने देखी खुशी थाय. घणुं गुं कहियें ! परंतु नारकीयोने दुःख देवामां तथा दुःखी देखीने खुशी वामां परमाधामीयोने जेवी प्रीति होय वे, तेवी प्रीति अत्यंतरंम्य वस्तुने जोइने पण होय नही. हवे पूर्वोक्त क्षेत्रवेदना, अन्योन्यवेदना, तथा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy