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________________ (५६३) पूजी, विजयदेव अधिकारी रे ॥शांतिगाथा जिनवर बिंब विना नवि वंडं, आणंदजी एम बोलें रे ॥सा तमे अंगें समकित मूलें, अवर नहि तस तोले रे॥ ॥ शांति ॥ ५ ॥ ज्ञातासूत्रे झैपदी पूजा, करती शिवसुख मागे रे ॥ राय सिदारथ प्रतिमा पूजी, कल्पसूत्रमाहे रागें रे ॥ शांति॥ ६ ॥ विद्याचारण मुनिवर वंदी, प्रतिमा पांचमे अंगें ॥ जंघाचारण मुनिवर वंदी,जिन पडिमा मन रंगें रे॥ शांति॥७॥ आर्य सुहस्ती सूरि उपदेशें, चावो संप्रतिराय रे ॥ सवा कोडी जिनबिंब जराव्यां, धन धन एहनी माय रे॥ शांति ॥ ७ ॥ मोकली प्रतिमा अनय कुमार, देखी आईकुमार रे ॥ जातिस्मरणें समकित पामी. वरियो शिववधु सार रे ॥ शांति॥ए॥ इत्यादिक बद्ध पाठ कह्या जे, सूत्रमांहे सुखकारी रे ॥ सूत्रतणो एक वरण नबाचे, ते कह्यो बदुल संसारी रे ॥ शांति ॥ १० ॥ तेमाटे जिन आणा धारी, कुमति कदाग्रह निवारी रे ॥ नक्ति तणां फल उत्तराध्ययनें, बोध बीज सुखकारी रे ॥ शांति ॥ ११॥ एक नवें दोय पदवी पाम्या, शोलमा श्रीजिनराय रे ॥ मुक मन मंदिरिये पधारावो, धवल मंगल गवराय रे ॥ ॥ शांति ॥ १२ ॥ जिन उत्तमपद रूप अनुपम, कीर्ति कमलानी शाला रे॥जिनविजय कहे प्रनुजीनी नक्ति, करतां मंगल माला रे ॥ शांति ॥१३॥ इति ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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