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(५५०) नयन लाल मुख लाल ॥ पंच पीतांबर उढत नीके, जादव बेल बोगाल ॥ ॥॥ अंबअंब कोकिलरव प्रातापित, गावत गीत रसाल ॥ चढी कदंब श्रीकृष्ण बजावे, मधु बसंतकी ढाल ॥ तुं० ॥ GR नटिका नंदी करुणानिधि, हरिकुल पंकज नाण ॥ करत केलि श्रीनेम मुरारी. रवि शशि उपमा प्राण ॥ ॥ तुं० ॥ ए ॥ यादव कुमर जले एकेकथे, गुणवंत अरु रूपवंत ॥ नेमीसर सरिखो नहीं कोई, त्रिनुवनके बलवंत ॥ तुं० ॥ १० ॥ वृंदावनमें एगिपरें खेलत, -सब यादवके वृंद ॥ नेमीसर जिनचंद पसायें, प्रत्यद परमानंद ॥ तूं ॥ ११ ॥ इति ॥
॥ अथ प्रजाति स्तवनं ।। ॥ जाग जाग जीव तुं, ॐ थयो प्रजात रे ॥प्रनु जीको नाम जज, पावे ज्युं शिव सात रे ॥जा॥१॥ पूरव दिशि नदित सूर, धरि प्रवाल रंग गात रे ॥ विबु धद्वंद पठत पाठ, नाउ गई रात रे ॥ जा ॥ २ ॥ मोह गहेली नींद गंमी,दूर करि मिथ्यात रे ॥ सुगुरु वचन बोध करि, धर्मगुं धरि धात रे ॥जा॥३॥दान शील तपो जाव, नावनगुंबद नांत रे॥ चार मंगल चार बुदि,होत नामथी विख्यात रे॥जापापंच पद को ध्यान करी,गुणियल गुण गात रे॥आपहीमें दोष देखि,टाल पराइ तांत रे।।जा॥५॥चरण करण विवेक शुरू,मनहुं करि थिर शांत रे॥कहत 'मुनि मलुक चंद, होत सदा सुख शात राजा॥६॥इति आत्मशोदापद॥