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( ए ) विजय उवद्यायनो,रूपविजय गुण गाय ॥क० ॥१॥
॥अथ नेमिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥सुनो मेरे नेमजी प्यारे, इगनसें मत रहो न्यारे ॥ सुनो० ॥ १ ॥ ए आंकणी॥ पचरंगी पाग सिर सोहीयें, गले फूल माल मन मोहियें । सुनो। ॥ २ ॥ दया करी दरिमन मुफ दीजें, मयः करी अ पनो कर लीजें ॥ सुनो० ॥ ३॥ जिनदान नंदा हे तेरा, लगा जिनराज में नेता ॥ सु० ॥४॥ इति ॥
॥ अथ स्तवन ॥ ॥लाल तेरे नैनोकी गत न्यारी, एतो नपशम र सकी क्यारी ॥लाल तेरे ए आंकणी ॥ काम को धादि दोष रहितसें, नयन नये अविकारी ॥ निका सुपन दिशा नही यामें, दर्शनावरण निवारीलाल ॥१॥ और नेनुमें काम क्रोध है, बहोत जरी हे खुमा री॥परधनादि हरनकी श्बा,एही है दुशियारी ॥जाना ॥॥एता लक्षण है नैर्नुमें, क्युं पामे नव पारी॥और विचार करो दिल अपने,ए तो है करमुसें नारी लाल ॥३॥धर्मबिना कोई सरणां नही है, ऐसो निश्चय दिल धारी ॥ विनय कहे प्रनु जक्ति कर ले, एहि हे तार गहारी॥ लालम् ॥ ४ ॥ इति ॥
॥ अथ वीरजिन पूजानुं स्तवन प्रारंन ॥
॥ गोकुल मथुरां रे वाहला ॥ ए देश ॥ ॥ त्रिशला नंदन रे देहें, रचीयें पूजा अधिक स नेहें ॥ नवनव जातें रे करीयें, जिम जव सायर हे