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(४१) इंश सुर लोकें जाय रे ॥ दत्त धरम पाले सदा, नेटशे शेजेज गिरिराय रे॥ वीर ॥ ॥ १३ ॥ पृथ्वी जिन मंमित करी, पामशे सुख अपार रे ॥ देव लोकें सुख नोगवे, नामें जयजयकार रे ॥ वीर० ॥ १४ ॥ पांच मा आराने डेडले, चतुर्विध श्रीसंघ होशे रे ॥ बहोत्रा रो बेसतां, जिनधर्म पहिलो जाशे रे ॥वीर० ॥१५॥ बीजे अग्नि जागशे, त्रीजे राय न कोय रे ॥चोथे प्रहरें लोपना, बारे ते होय रे ॥ वीर० ॥१६॥ इति ॥
॥ दोहा ॥ बरे आरे मानवी, बिलवासी सवि होय ॥ वीश वरसनु आनखं, पटवर्षे गर्नज होय ॥ ॥ १७ ॥ सहस चोराशी वर्षपणे, नोगवशे नवि कर्म ॥ तीर्थकर होशे ननो, श्रेणिक जीव सुधर्म ॥ ॥ १७ ॥ तसु गणधर अति सुंदर, कुमारपाल नूपा ल ॥ आगम वाणी जोक्ने, रचीयां रयण रसाल ॥ ॥ १ ॥ पांचम प्राराना नाव ए, प्रागमें नारख्या वीर ॥ ग्रंथ बोल विचार करा, सांजलजो नवि धीर ॥ २० ॥ जणतां समकित संपजे, सुणतां मं गल माल ॥ जिनहर्षे कही जोड ए, नारख्यां वयण रसाल ॥ १ ॥ इति पांचमा आरानी सद्याय ॥ ॥ अथ मरुदेवाजीनी सद्याय ॥राग धन्याश्री॥
॥ तुज साथें नहीं बोलुं रे खनजी, तें मुझने वीसारी जी ॥ अनंत ज्ञाननी तुं शशि पाम्यो, तो जननी न संनारी जी ॥ तु ॥१॥ मुझने मोह ह तो तुऊ नपर, ऋषन षन करी जपती जी॥ अन्न