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(४७२) चार कुसुम प्रधान रे ॥ सम० ॥ ५॥ नावें पूजो रे पावन आतमा जी, पूजो परमेसर परम पवित्र रे ॥ कारण जोगें कारज नीपन जी, दमा विजय जिन आगम रीत रे ॥ सम० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥अथ श्री वीरनगवाननुं स्तवन ॥ ॥ श्रीसीधशरथ नंदन देवा, प्रनु सेव करूं नित्य . मेवा ॥ देजो मुफ नव नव सेवा ॥ जगत गुरु वीर परम नपगारी ॥ प्रनु करुणा निधि दातारी ।। जग त० ॥ए आंकणी ॥ १ ॥ शाल पहार प्रनु देशना वरसे, सांजली नवि हृदयमा धरशे ॥ तोरा चरण कमल नित्य फरसे ॥ ज । २ ॥ ब्राह्मण देवशर्मा जाणे, प्रतिवोधवा मोकलिया ते टाणे । गौतम चाव्या गुण खाणे ॥ ज० ॥३॥प्रतिरबोधीने पाला वलिया मारग मांहे श्रवणे सांनलिया ।। प्रनुमोद मारग संच रिया ॥ ज० ॥ ४ ॥ ते सांननी दिलमा वात, गौतम ने थाये वजघात ॥ विवेके गुण मणि ख्यात ॥ ॥ ज० ॥ ५ ॥ हवे केहने दं कहीश वीर, गौतम चिंतवे साहस धीर ।। कर्म शत्रुना जोड्या जंजीर ॥ ॥ जग ॥ ६॥ काती कृष्ण दुआ निर्वाण, प्रना ते इंश्नति केवल नाण ॥ जयो जयो नणे गुण खाण ॥ ज० ॥ ७ ॥ अढार देशना राजा मलिया, जाव दीपक मोहमा नलिया॥ इव्य दीपक गुणमणि नरिया ॥ ज० ॥ ७॥ प्रनु वरिया शिव लटकाली, धरधु ध्यान पद्मासन वाली॥ तिहां प्रगटी लोक दीवाली