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॥हार त्रेवीशमुं॥ ढाल चोवीशमी॥ थांपर वारी॥
॥ महारा साहेबा ॥ ए देशी ॥ ॥ गर्नज नर तिरि योनिमां, वेदत्रण्य वखाण्या॥ स्त्री पुरुष वेद के देवमां, नव न' तक जाण्या ॥१॥ ॥धार चोवीशमुं अल्प बदुत्वनं । ढाल पञ्चीशमी॥
॥ शुं करीयें जो मूलज कूडं ॥ ए देशी ॥ ॥ सदु जीवथी थोडा संसारी, पर्याता मानव नि र्धारी ॥ बादर अनि वैमानिक देवा, नुवनपति व्यंत र नारकलेवा ॥१॥ज्योतिषी चौरिंडी पंचेंडी तिरिया, वेंडी तें नू जल वान कहीया ॥ चढते पदें एक एक थ कां, असंख्य गुणा लहो अधिकां अधिकां ॥ २ ॥ स दुथी वधता वनस्पति जीव, अनंतगुणा जाणो स दीव ॥ जिनजीयें कह्या नाव में जोया, तुम खिज मत विना नव खोयां ॥३॥ ॥ ढाल बबीशमी। सुण करुणानिधि हंसता॥ए देशी॥
एणी परें चोवीश दंगकें,नवमांहे प्राणी जमियो रे ॥ अनंत चोवीशी वही गई, पण जिन मारग नवि गमियो रे ॥१॥धन धन दिन महारे आजुनो। मुने त्रिनुवन नायक तूठो रे॥श्री जिनशासन पामी यो, आज मेह अमीरस व्रतो रे ॥धन ॥३॥ सत्तर एक्याशियें चैत्रमा, वारु वदि 6 मंगल वार रे ॥ वीतराग एम वीनव्या, सूरय पुर नगर मोकार रे ॥ धन ॥ ३ ॥ श्रीवासुपूज्य पसानले, हीररत्न सूरि सान्निध्ये रे ॥ वाचक उदय रतन वदे, कृमि