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॥ ४ ॥ समयसुंदर कहे सुणो रे लोकाइ, स्वारथ हे नलि परम सगाई || स्वा० ॥ ५ ॥ इति ॥
|| पद राग पट ॥
॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ, बेरन निश कहांसें रे याइ ॥ सो० ॥ निश कहे में तो बाली रे जोली, बडे बडे मुनिजनकं नाखुं रे ढोली || सो० ॥ १ ॥ निश कहे में तो जमकी दासी, एक हाथे मूकी बीजे हायें फांसी ॥ सो० ॥ २ ॥ समयसुंदर कहे सुनो नाइ ब नीया, याप मूए सारी मुब गइ डुनीयां ॥ सो० ॥ ३ ॥ ॥ अथ पंचपरमेष्टी प्रारति ॥
॥ इहविध मंगल आरति कीजें, पंच परमपद नजि सुख लीजें ॥ इह० || पहेली आरति श्रीजिनरायजा, नविजन पार उतार जीहाजा ॥ इ६० ॥ १ }! बीजी प्रारति सिधस्वरूपी, ध्याने उपजे परम रस कूपी ॥ इह० ॥ २ ॥ त्रीजी आरति सूरि मुलिंदा, जनम जनम दुःख दूर हरंदा ॥ इह० ॥ ३ ॥ चोथी आरति श्रीवाया, दरिसण देखत पाप नसाया ॥ इह० ॥ ४ ॥ पांचमि आरति साधु बताइ, मोह मान ममताकुं हटाइ ॥ इह० ॥ ५ ॥ बही आरति हे सुखदाइ, कुमति विदारण शिव अधिकाई ॥ इह० ॥ ६ ॥ सातमि आरति श्रीजिनबानी, ध्यान धरत मुगती सुखदानी ॥ इह० ॥ ७ ॥ इति प्रारति ॥
॥ अथ नेमजीना साते वार लिख्यते ॥ ॥ सखि नमीयें ते नेम जिनराज, गढ गिरनारें