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(४०५) मोहोटां मंदिर मालीयां, घर पण घणेरी आथ॥हीरा माणक अति घणा, पण कांश नावे साथ ॥ मा० ॥ ॥ १७ ॥ कोडी गमे कुकर्म कियां, केतां कहूँ तुम था गल ॥ लेखे किणि परें पोहोंचीयें, प्रनुजीशु कागल॥ ॥ मा०॥ १५ ॥ आगल वैतरणी वहे, तिहां कोई न तारे ॥धर्मी तरी पार पामशे, पापी जाशे पायालें। ॥ मा०॥ २० ॥ दीवे मारग चालीयें, न जरियें कूडी साख ॥ काल काया पडि जायशे, मशाणें नमशेरा ख ॥ मा० ॥ २१ ॥ जतन करंतां जायशे, नमी जा शे सास ॥ माटी ते माटी थायशे, ऊपर गशे घास ॥ ॥मा॥२॥ माय बाप ए केहनां, केहनो परिवार ॥ पुत्र पौत्रादिक केहनां, केहनी घरनार ॥ मा० ॥१३॥ कोइम करशो गारवो, धन जोबन केरो ॥ अंतें उग यो कोई नही, आपणंथी जलेरो ॥ मा० ॥ २४॥ महारुं महारुं करतो थको,पड्यो माया ने मोहालो चन बे मीचागडां, तव घणी अनेरा होय ॥मा॥ ॥ २५ ॥ जे जिहां ते तिहां रह्यु, चाल्यो एकलो या प॥ साथै संग ते बे थयां, एक पुण्य ने पाप ॥मा०॥ ॥२६॥ सुगुरु सुसाधु वंदियें, मंत्र महोटो नवकार ॥ देव अरिहंतने पूजीयें, जेम तरीयें संसार ॥ मा० ॥ ॥ २७ ॥ शालिनइ सुख जोगव्यां, पात्र तणे अधि कार॥खीर खांमघृत वहोरावीयां,पोहोता मुक्ति मका र ॥ मा०॥॥ तस घर घोडा हाथीया, राजा दी ए बदु मान ॥ दान दया करी दीजियें, नावें साधु