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(३७७) देव कुमार ॥ ११ ॥ बत्रीश बत्रीश पदमणी, बत्रि श बत्रिश हेम कोड ॥ नेम समीप संयम वरी, ते वंदूं कर जोड ॥ १११ ॥ सहस पुरुषगुं संजम लि यो, श्रीनेमीसर हाथ ॥ ते थावच्चो वंदियें, मोचव कस्यो यनाथ ॥ ११२ ॥ बार वरष बह आंबिल, कीधां शिवकुमार ॥ शीयल व सदा धरी, ए पण छ करकार ॥ ११३ ॥ कोश्या मंदिर चोमासुं रही, चो राशी चोवीश ॥ ते शुलिन मुनि वंदिये, अश्वादु गुरुशिष्य ॥ ११ ॥ कपिला संगें नवि चल्यो, शेठ सुदर्शन चंग ॥ शूली सिंहासन थई, सुर करे मनने रंग ॥ ११५ ॥ शिवरमणीने कारणें, जिण सुख बंमयां देह । तिस नाम दोय चार लीजियें, नवि जन सुगजो तेह ॥ ११६ ॥ वरस दिवस कानसग किन, बाहूबल अणगार ॥ मानगजेंथी कृतस्यो, तब लियो केवल सार ॥ ११७ ॥ गजसुकमाल शिर शो मने, देखि धस्या अंगार ॥ समता पसायें ते वली, पाम्या जवनो पार ॥ ११॥ मेतारज शिर सोनि ये, वाधर वीट्यो धरि खेद ॥ निजमन गमज रा खयुं, कियो संसारनो वेद ॥ ११ए । सक्कोसल सुक माल मुनि, बलुओँ वाघण अंग ॥ बापनी जामि मा जखी, शिवपुरि वरि मनरंग ॥१२॥पूर्व जव घि या शिवालणी, तिण जख्यो अवंति सुकुमाल ॥ न लिनीगुल्म विमानमां, पाम्यो सुख ततकाल॥११॥ पंचशत शिष्य खंधक तणा, घाणी पील्या सोय ॥