________________
(३५) निज जीवातुं विचार॥६॥ कर्मे को नवि टियें, इंश चंद नरदेव ॥ राय राणा मंमलिक वली, अवर नरज कुण हेव ॥७॥ वरस दिवस घर घर जम्या,
आदिनाथ जगवंत ॥ कर्म वशे उख तिणे लह्यां, जे जगमां बलवंत ॥ ७ ॥ पास जिणंद प्रतिमा र हि, नपसर्ग कियो सुरिंद ॥ ते उपसर्गने टाहियो. पद्मावति धरणिंद ॥ नए ॥ काने खीला घातिका, च रणे रांधी खीर ॥ तेदुंने कम नड्यो, चोविशनो श्री वीर ॥ ॥ मन्त्री माया तप करी, पाम्या स्त्री अवतार ॥ सुरपति कोडि सेवा करी, कर्मनो एह प्रकार ॥ १ ॥ पुरुषविपे चूडामणि, जरत नरेस र राय ॥ बाहुबलि हार मनावियो, आज लगें कहे वाय ॥ २ ॥ कीधां कर्म न बूटिये, जेहनो विषमो बंध ॥ ब्रह्मदत्त नर चक्कवई, सोल वरस लगें अंध ॥ ३ ॥ आहमो सुनूम चकवी, झदि तगो नहिं पार ॥ कर्मवशे परिवारशुं, बूमा समुइ मका र ॥ ए ॥ पांच पांव अतुली वली, तेह नम्या वनवास ॥ इस्या पुरुष जगमां वली, दिनपणे फस्या निराश ॥ एए ॥ राम लखमण जगमां वली, जेह नुं जपे सदु नाम ॥ ते वनवासमाहे रह्या, जे बदु गुणना धाम ॥ ए६ ॥ रावण विकट रामें ह एयो, कृष्णे हण्यो जरासंध ॥ जराकुमर हरिने हण्यो, देखो कर्मनो बंध ॥ ७ ॥ निज पुत्री तातें वरी, तस कूरखें सुत देव ॥ कर्मवशे जिव कप