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(३७१) जिनराज॥यमने गुरुज गोचरीजी रे,लान देशे कुरा
आज ॥सो॥१॥ माता हाथे पारणु जी रे,याशे तु मने रे आज ॥ धीर वचन निश्चय करी जी रे, आव्या नगरीमांज ॥सो॥२०॥ घरे आव्या नवि उत्लख्या जीरे, फरिया नगरी मकार ॥ मारग जातां महिया रडीजी रे, मामी मलि तेणि वार ॥ सो० ॥ १ ॥ मुनि देखी पन ननस्युं जी रे, विकसित थइ तल देह ॥ मस्तक गोरस सूजतो जी रे, पडिलान्यो धरि नेह ॥ सो० ॥ २२ ॥ मुनिवर वोहोरी चालिया जी रे, आव्या श्रीजिनपास ॥ मुनि संशय ज पूडियो जी रे, माय न दीधुं दान ॥ सो ॥ २३ ॥ वीर कहे तुमें सांजलो जी रे,गोरस वोहोखो रे जेह ॥ मार ग मली महियारडी.जी रे, पूर्व जन्म माय एह ॥ सो ॥ २४ ॥ पूरव नव जिनमुखें लही जी रे, ए कत्र नावें रे दोय ॥आहार करी मुनि धारियो जी रे, अणसण गुचज होय ॥ सो० ॥२५॥ जिन आ देश लही करी जी रे, चढिया गिरि वैनार ॥ शिला ऊपर जश् करी जी रे, दोय मुनि अणसण धार ॥ ॥सो॥२६॥ माता नश संचयां जी रे, साथे बद् परिवार ॥ अंतेनर पुत्रज तणो जी रे, लीधो सघलो सार ॥ सो॥ २॥ समवसरणे आवी करी जी रे, वांद्या वीर जगतात ॥ सकल साधु वांदी करी जी रे, पुत्र जोवे निजमात ॥ सो० ॥ २७ ॥ जोई सघली परषदा जी रे, नवि दीठा दोय अणगार ॥ कर जोड़ी