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नोलवी तिहां बेसाड्यो, पण सुमतें समजायो ॥ अ० ॥ ३ ॥ जब में मदिरा बाक निवारी, समकित सुखडी चाखी ॥ उपशम रस सुधारस पीयो, चित्त चेतनने दाखी ॥ ० ॥ ४ ॥ श्रीशंखेश्वर चरण सरोरुह, जागी ध्याननी ताली । रूपविबुधनो मोहन पनणे, जिनमत स्तुति लटकाली ॥ श्र० ॥ ५ ॥
॥ अथ सुविधिजिन स्तवनं ॥ कही नषामां ॥ ॥ वो सीं गमण वेंधा, वमेके पेर पोंधा ॥ केशर जो घोर घोरिंधा, वो वमी पूजा कंधा ॥ य चो० ॥ १ ॥ दीवबंदिरमें दिठो साहेब, सच्चो सुबुद्धि
देव || नांइयां अना पाणजो अना, जी का सेव ॥ ० ॥ २ ॥ को चे अल्ला को चे कंथड, को चे जे सर पीर ॥ को चे पो को चे दावल, को चे बावो धीर ॥
० ॥ ३ ॥ एडा देव में दिना जता, विद्या गमो गम ॥ मूंके साहेब तुंहीज गम्यो, आशाजो विसरा म ॥ ० ॥ ४ ॥ सर्ग मृत्यु पातालमें एडो, बेड नांए कोए नाथ ॥ मिली माडुयेंजी यास्या पूरे, सच्चो सिजो साथ ॥ ० ॥ ५ ॥ तोजी अंगी चंगी दि डी, सोवनमें जरपूर ॥ मडे मोड फलामल दीपे, नरकें उग सूर ॥ ० ॥ ६ ॥ तोजे देवलमें दीया जका, जका फूलेंजा ढग्ग ॥ तोजो देवल दिहे नांयो, हेडो हुंथो सग्ग ॥ ० ॥ ७ ॥ मुंजी आस्या पूरजहा
, सच्चा सुविधिबुधिनाथ ॥ जिनविजय चे साहेब मुंजा, तुंही तुंही जगनाथ ॥ ० ॥ ॥ इति ॥