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॥ ४ ॥ सोलरों बासइसमे रे, सांगानेर मजार ॥ पद्म प्रभुं सुपसाउने रे, एह नएयो अधिकार रे ॥ धर्म० ॥ ॥ ५॥ सोहम साभी परंपरा रे, खरतर गड कुलचंद ॥ युगप्रधान जग परगडो रे, श्री जिनचंद सुरिंदरे ॥ ॥ धर्म० ॥ ६ ॥ तास शिष्य प्रतिदीपतो रे, विनय वंत जसवंत || याचारिज चढती कला रे, जिन सिंह सूरि महंत रे ॥ धर्म० ॥ १ ॥ प्रथम शिष्य श्री पूज्यना रे, सकलचंद तस शिष्य ॥ समयसुंदर वाचक जो रे, संघ सदा सुजगीश रे ॥ धर्म० ॥ ८ ॥ दान शियज़ तप जावना रे, सरस रच्यो संवाद ॥ जपतां गुणतां नाव रे, ऋद्धि समृद्धि सुप्रसादो रे ॥ धर्म० ॥ ए ॥ इति दानं शियल तप नावनुं चोढालीयुं संपूर्ण ॥ ॥ अथ प्रजाती रागमां स्तवन ॥
॥ कहा रे अज्ञानी जीवकूं, गुरु ज्ञान बतावे ॥ कबहुं न विषय विष तजे, कहा दूध पिलावे ॥ कहा० ॥ ॥ १ ॥ कवर ईख न नीपजे, कहा बोवन जावे ॥ रा सन बार न बांहीं, कहा गंग जिलावे ॥ क० ॥ २ ॥ काली कन कुमाणसां, रंग दूजो न खावे ॥ श्रीजिन राज कटुं कहा, वाको सहज न जावे ॥ क० ॥ ३ ॥ ॥ अथ सुविधिजिनस्तवनं ॥ राग प्रजाती ॥
॥ मुजरा साहेब मुजरा साहेब, साहेब मुजरा मेरा रे || साहेब सुविधि जिनेसर प्यारा, चरण पखालुं प्रभु तेरा रे ॥ मु० ॥ १ ॥ केशर चंदन चरचुं अंगें, फूल चडा सेरा रे || घंट बजावुं ने अगर उखेवुं, करूं