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(३२) नत्नास ॥ मृगलो नावना जावतो रे, पोहोतो स्वर्ग आवास ॥ सो० ॥ १०॥ निज अपराध खमावती रे, मूक्यो मनथी मान ॥ मृगावतीने में दीयुं रे, नि मैल केवल झान ॥ सो० ॥ ११ ॥ मरुदेवी गज ऊपरें रे, देखी पुत्रनीति ॥ मुझने मनमांहे ध स्यो रे, ततदण पामी सिदि॥ सो० ॥ १२ ॥ वीर वंदण चाल्यो मारगें रे, चांप्यो चपल तुरंग ॥ दरनामें देवता रे, तेह थयो मुफ संग ॥ सो ॥१३॥ प्रनुपाय पूजन नीसरी रे, उर्गला नामें नार॥ कालधर्म वचमां करी रे, पोहोती स्वर्ग मकार ॥ सो ॥ १४ ॥ कायानी शोना कारमी रे, रूप किस्यो अनि मान॥जरत आरीसा नुवनमां रे, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ सो ॥ १५॥ आषाढनूति कलानिलो रे, प्रगट्यो जरत सरूप ॥ नाटक करतां पामीयो रे,केवलज्ञान अ नूप ॥सो॥१६॥ दीक्षा दिन कानस्सग्ग रह्यो रे, ग जसुकमार मशाण ॥ सोमल शीश प्रजालियो रे, सिदि गयो शुन जाण ॥ सो० ॥ १७ ॥ गुणसागर थयो के वली रे, सांजली टथिवी चंद॥पोतें केवल पामीयो रे, सेव करे सुर इंद ॥ सो० ॥१७ ॥ एम अनेक में 35 स्खा रे, मूक्या शिवपुर वास ॥समयसुंदर प्रनु वीरजी रे, मुझने प्रथम प्रकाश ॥ सो० ॥ १ ॥
॥दोहा॥ वीर कहे तुमे सांजलो, दान शियल तप जाव ॥ निंदा ने अति पापिणी,धर्म कर्म प्रस्ताव ॥१॥ पर निंदा करतां थकां, पापें पिंम नराय ॥ वेढ राढ