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________________ (३२२) समवसरण देवें रच्यु, बेग श्रीवईमान ॥ २ ॥ बेठी बारे परखदा, सुगवा जिनवर वाण ॥ दान कहे प्र नु ढुं वडो, मुझने प्रथम वरखाण ॥ ३ ॥ सांजलजो सदुको तुमें, कुण ने मुज समान ॥ अरिहंत दी दा अवसरें, आपे पहिलुं दान ॥४॥ प्रथम पहो र दातारनु, लीये सदु कोइ नाम ॥ दीधारी देउल च ढे, सीके वंबित काम ॥ ५॥ तीर्थकरने पारणे, कुण करशे मुफ होड ॥ वृष्टि करूं सोवन तणी, साडी बा रह कोड ॥ ६ ॥ढुं जग संघलुं वश करूं, मुज मोहो टी डे वात ॥ कुण कुए दानथकी तस्या, ते सुजो अवदात ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ लज़नानी देशी ॥ ॥ धन सारथवाह साधुने, दीधुं घृतदान ॥ ललना ॥ तीर्थकर पद में दीयुं, तिणे मुझने अनिमा न ॥ ललना ॥ १ ॥ दान कहे जग हुँ: वर्ल्ड, मुफ सरि नही कोय ॥ललना ॥ ऋदि समृद्धि सुख संप दा, दाने दोलत होय ॥ ललना ॥ दा० ॥२॥ सुमु ख नामें गाथापति, पडिलान्यो अणगार ॥ ललना॥ कुमर सुबाहु सुख लद्यु, तेतो मुफ उपगार ॥ लल ना ॥ दा० ॥ ३ ॥ पांचशे मुनिने पारj, देतो वो होरी आण ॥ ललना ॥ जरत थयो चक्रवर्ति जलो, ते पण मुफ फल जाण ॥ ललना ॥ दा० ॥ ४ ॥ मास खमणने पारणे, पडिलान्यो इषिराय ॥ लल ना ॥ शालिनइ सुख जोगवे, दान तणे सुपसाय ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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