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॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ।। प्रनाति रागमां ॥ ॥ वहाणलां वाह्यां रे प्रनु, वहाणलां वाह्यां॥ जू ने जागो रे प्रनु, वहाणलां वाह्यां ॥ माता वामा देवी एम, बोले रे वाणी ॥ तमारूं मुख जोवा आ व्यां, इं इंझणी॥ वहाणलां ॥१॥तान मान पंच शब्द, वाजां रे वाजे ॥ गीत गायन थातां प्रनु, अंबर गाजे॥ व ॥२॥ देव गाये ने ारें नना, बिरुद बोले ॥ कोई अमारा प्रनुजीने, नावे रे तोलें। व० ॥३॥ माताजीनां वचन सुणी, पास कुमर जा ग्या ॥ नविक जीवनां वंडित फव्यां, मुहनां मांग्यां। व०॥४॥ प्रनु मुख जोयाना रंग, कह्या न जाये ॥ देखा रे नयणे उलट, अंग न माये ॥व० ॥ ॥ ५॥ नित्यलान कहे स्वामी, अंतरजामी॥जले रे में नेट्यो आज, गोडीचों स्वामी ॥ व ॥प्रनु० ॥ ६ ॥
.. ॥ अथ वीर जिन स्तवनं ॥ ॥वीरजिणेसर साहिब मेरा, पार न लडं तेरा॥म हेर करी टालो महाराजजी,जनम मरणना फेरा हो। जिनजी अब ढुं शरणें बायो ॥ १ ॥ गर्नावास तणां उःख मोहोटां, गंधे मस्तक रहियो ॥ मल मूतर मांहे लपटाणो, एहवो कुःख में सहियो हो ॥ जि० ॥ ॥२॥ नरक निगोदमां उपनो ने चवियो, सूक्ष्म बादर थश्यो॥ वेहेंचाणो सुश्ने अपनागें, मान तिहां किहां रहियो हो ॥ जि० ॥ ३॥ नरकतणी वेदना अति न नसी, सही ते जीवें बद॥ परमाधामीने वश पडी