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________________ (२७) मेह ॥ ४० ॥ ११ ॥ के चाल्या रे के चालशे, के चालण हार ॥ केश बेग बूढा बापडा, जाए नरक मकार ॥ ४० ॥ १२ ॥ जिण घर नोबत वाजती, दुता बत्रीशे राग ॥ ते मंदिर खाली पड्यां, बेठण लागा रे काग॥ नू ॥ १३॥ नमरो आव्यो रे कम लमां, लेश कमलनुं फूल ॥ कमलनी वांडगयें मांहे रह्यो, जेम आथमते सूर ॥ नू ॥१४॥ महमद कहे वस्तु वोरिये, जे कोइ आवे रे साथ ॥ आपणो लान नगारीयें, लेखु साहिब हाथ ॥ नू० ॥ १५ ॥ ॥अथ अरिहंत स्तुति प्रारंजः॥ ॥ श्री अरिहंत नमीजें. चतुरनर! श्री अरिहंत नमीजें । ए आंकणी॥ बारस गुणशोनित जगमो हित, सुर नर नमित कहीजें ॥ अतिशय चार प्रथ म वली पाठे, प्रातिहार जस लहीजें ॥ च ॥ श्री० ॥ १०॥ चार सहज एकादश खायिक, उगणी श दैव्य ग्रहीजें ॥ उत्तर अतिशय चोत्रीश पांत्रीश, वाणी समीप रहीजें ॥ च ॥ श्री० ॥ २॥ तीर्थक र पद जोगी सयोगी, गुणगाणे प्रणमीजें ॥ जावस्व रूप रमण अनिलाष्यो, तेहनी आग वहीजें ॥च० ॥ श्री० ॥३॥ इत्यर्हतां स्तुतिः समाप्ता ॥ ॥अथ अतींश्यि स्वरूपसि स्तुति प्रारंजः॥ परमेष्ठी पाराधी सुगुणिजन ! परमेष्ठी पारा धी॥ शिव अविचल अरु जानत पदवी, अक्ष्य अ व्याबाधी॥ अपुनर्नव सिदि गति सुख पूरण, ठाण
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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