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(ए३) प्रनु धीरज तोले ॥ आदि० ॥ २ ॥ वात न मानत देव एक,सर्प को वेश बनावे ॥ प्रनु पकरके मार दे, चित्त नांहीं मरावे ॥ आदि० ॥ ३ ॥ बालक हो प्रनुयुं रमे, हास्यो खंध चढावे ॥ बीनत्स होकें बढ्यो, गगनें ने जावे ॥ आदि० ॥ ४ ॥ हसत दयालु देख कें, मुख युं जस कहावे ॥ धन्य धन्य महा वीरजी, रूपचंद मन नावे ।। आदि० ॥ ५ ॥इति ॥
अथ झपनजिन स्तवनं । राग नैरव ॥ ॥ उठत प्रनात नाम, जिनजीको गायें ॥1॥ नानिजीके नंदके, चरण चित्त लायें ॥ १० ॥ १ ॥
आनंदके कंद, जाकुं पूजत सुरिंद द्वंद, एसो जिनरा ज बोड, उरकुं न ध्याश्ये ॥ 7 ॥ २ ॥ जनम अयोध्या ठाम, मात मरूदेवा नाम, संडन वृषन जाके, चरण सोहायें ॥ उठ० ॥ ३ ॥ पांचशे धनु पमान, दीयत कनक वान, चोराशी पूरव लाख, आ यु स्थिति पायें ॥ न० ॥ ४ ॥ आदिनाथ आदि देव, सुर नरहि सारे सेव, देवनको देव प्रनु, गुन सु ख दायें ॥ उठ० ॥ ॥प्रनुको पादारविंद, पूजत हरखचंद, मेटो कुःखदंद सुख संपद बढायें ॥६॥
॥अथ पद ॥ राग विनास ॥ ॥प्रनुजीको दरिसन पायोरी, आज में ॥ प्रनु० ॥ वंबित पूरण पास चिंतामणि, देखत उरित गमायो री॥ आज में ॥१॥ मोहनी मूरत महिमा साग र, तीरथ सब जग बायो री॥॥ नानचंद प्रनु