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(२१) प्रनु रे, सकल करम करे दूर ॥ केवल लखमी पाम वा रे, वंबित लीला पूर ॥ अखीयां० ॥ ३ ॥ गिरि वर फरस्यो नावणुं रे, सफल कीयो अवतार ॥ श्री जिनहरख पसायथी रे, संघ सदा सुखकार ॥ अ खीयां ॥४॥ घणा दिवसनी चाह हती रे, देख न प्रजु दीदार ॥ रत्नसुंदर पाठक कहे रे, अविचल लीत अपार ॥ अखीयां ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्रीशांतिजिन स्तवनं ॥ ॥ शांतिकरण प्रनु शांतिजिनेश्वर, शांतिकरण न कुलमें हो जिनजी, तुं मेरे मनमें, तुं मेरे दिल में । ध्यान धरूं पलपलमें हो जिनजी ॥ तुं० ॥ १ ॥ तुं० ॥ निर्मल ज्योति वदनपर शोजत, निकस्यो ज्यु चंद बादलमें ॥हो जिगातुं०॥ जिनरंग कहे प्रनु शांति जिनेश्वर, देख्योज्युं देव खलकमें हो॥ जिन॥॥॥
अथ श्रीसमेतशिखरनुं स्तवन ॥ ॥ शिखरजीकी जात्रा क्युं न करे ॥ जाके बंधे करमकी रेख ॥शिखर ॥१॥ पालगंजमें सफल हो त हे, मधुवन पाप टरे ॥ सीतानाल अनोपम सोहे, निर्मल नीर जरे ॥ शिखर॥ २ ॥ वीश टुक पर वी श जिनेसर, मुनिजन ध्यान धरे ॥ कर्म खपावी मु गतिकुं पोहोंचे,शिव रमणीकू वरे ॥ शिखर० ॥३॥ इंशदिक सुर नृत्य करत हे, नाना नाव धरे ॥ इंश
णी मिली मंगल गावे, मोतीना थाल नरे ॥ शिख र० ॥ ४ ॥ मन वच तन करी प्रनुजीकू ध्यावे, उर्ग