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(२८) नाद बजावे, आले तान मिलावे हे॥ सबका राम स रिखा नही ग्या, काहेकू नेख सजावे हे ॥1॥३॥ जती दुधा इंशी नहिं जीती, पंचनूत नहिं लीना है। जीव अजीवकू बूग्या नांही, नेख लेहीकें हीना हे ॥ ३० ॥॥ वेद पढया ब्राह्मण कहलावे, ब्र ह्मदशा नहिं पाया है॥ आत्मतत्त्वको अर्थ न जा न्यो, फोकट जन्म गुमाया हे ॥ ३० ॥ ५ ॥ जंगल जाये नस्म चढाये, जटा वधारी केशा हे । परनव की आशा नहिं मारी, फिरि जैसा का तैसा है।। ॥ ६॥ काजी किताब खोल कर बैठा, क्या किताब में देरख्या हे ॥ वकरीके गले बरी चलावे, क्या देवें गा लेखा है॥10॥॥ जिने कंचनका महेल ब नाया, उनकुं पीतल कैसा हे॥माख्या गने में हार हीरे का, सब जुग काच सरीसा है 15॥७॥ रूपचंद रंग मगन नया हे, नाथनिरंजन प्यारा है॥ जटम मरनका मर नहिं याकू, चरण शरण तीहारा है ॥3॥णा
॥अथ सिमाचल स्तवनं ॥ ॥ विवेकी विमलाचल वसीयें, तप जप करी का या कसीयें, खोटी मायाथी खसीयें ॥ वि० ॥ वसी उनमारगथी खसीयें ॥ वि० ॥१॥ माया मोहनी यें मोह्यो, कोण राखे रणमा रोयो ॥ आ नरजव ए लें खोयो ॥ वि० ॥ २ ॥ बाललीलायें दुलरायो, जोवन युवतीयें गायो, तोहे तृप्ति नवि पायो । वि० ॥ ३ ॥ रमणी गीत विषय राच्यो, मोहनी