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(२०) आठ गांठको सांतो मीठगे, गांठ गांठ रस न्यारो ॥ रे मन ॥१॥ बिनमें और पलकमें दूजो, घडी घडी दिलसें न्यारो ॥ रे मन ॥ ५ ॥ चंचल मन व रज्यो नहि माने, प्रनु नव पार उतारो॥रेमन॥३॥ ॥ अथ वईमानजिन स्तवनं ॥राग वेलावल ॥
॥रे मन क्युं जिन नाम रिसायो ॥क्युं॥ रे म न०॥ विषय विकार महानद धास्यो, जनम जुन्या ज्यु हास्यो ॥ रे मन॥१॥ जिने तोकुं नरदेही दीनी, गर्न की आंच नहायो ॥ ता प्रनुजीकू तें शत सूरख, एक घडी न संजास्यो ।। रे सन० ॥ २नहिं कबू दान शियल तप पूजा, नहिं जिन नाम नचायो । जैनधर्म चिंतामणि सरिखो काच जाण कर माथो ॥ रे मन ॥ ३ ॥ करु ले सुरत. दया नहर ले, जो नव चाहत सुधाखो ॥ हरखचंद वर्षमान जिनेसर, अवसर मांहे न संनास्यो ॥ रे मन ॥४॥ इति ॥
॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं। तुमरीमा॥ ॥ सहसफणा रे मोरा साहिबा, तेरी सामरी सूर तपर वारी जा रे ॥ तेरी मधुरी मूरत परवारीजा - रे ॥ सहस० ॥ १ ॥ ए अांकणी ॥ तन मन लगन लगी एक तोमु, मेंतो देव अवर नहिं ध्यानं रे ॥ सह स० ॥ ॥ सफल नइ आज घडीअ हमेरी,मेंतो देखी दरस सुख पाउं रे ।। सहस० ॥३॥ वदन कमल बबी देखत सुंदर, मेंतो रोम रोम उलसावं रे ॥ सहस० ॥४॥ तुम गुणको कबू पार न आवे, उपमा क्या मैं ब