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(२७१) द॥सिमसातमोरेंअंजन योगथी, जिम कालिक मुनि चंद ॥ धन धन ॥ ३३ ॥ काव्य सुधारस मधुर अ रथ जस्खा, धर्म हेतु करे जेह ॥ सिक्सेनपरें नरपति रीजवे, अच्म वर कवि तेह ॥धन धन ॥ ३४॥ ज व नवि होवे प्रनाविक एहवा, तव विधि पूर्व अने क ॥ जात्रा पूजादिक करणी करे, तेह प्रनाविक लेक ॥धन धन ॥३५॥ ढाल ॥ सतीय सुनशनी देशी ॥ सोहे समकित जेहथी, सखि जिम ानर णे देह ॥ नूषण पांच ते मन वस्यां, सखी मन व स्यां, तेहमां नही संदेह ॥ मुज समकित रंग अचल होयो ॥ ए टेक ॥३६॥ पहिखं कुशलपणुं तिहां, स खी वंदन ने पच्चखाण ॥ किरियानो विधि अति घ पो, सखी आचरे तेह सुजाण ॥मुफ॥३७॥बी जूं तीरथ सेवना, सखी तीरथ तारे जेह ॥ ते गीता रथ मुनिवस, सखी तेहगुं कीजें नेह ॥मुफ॥३७॥ नक्ति करे गुरुदेवनी, सखी त्रीजें जूषण होय ॥ किणहि चलाव्यो नवि चले, सखि चोथु नूषण जो य ॥ मुक० ॥३ए। जिनशासन अनुमोदना, सखी जेहथी बहुजन हुँत ॥ कीजें तेह प्रनावना, सखी पांच जूषणनी खंत ॥ मुक० ॥ ४० ॥ ढाल॥ इम नवि कीजें हो ॥ ए देशी ॥ लक्षण पांच कह्यां सम कित तणां, धुर उपशम अनुकूल ।। सुगुण नर ॥ अ पराधीशुं पण नवि चित्तथकी, चिंतवियें प्रतिकूल ॥ सुगुण नर॥ श्रीजिननाषित वचन विचारिये ॥ ए टेक