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वर बन्नु जिनवर, अधो ऊर्ध्वने लोक ती जाएं ए ॥ सासय सासय जैनपडिमा ते सर्व वखाएं ए || विधिप पूज्य परगट, श्री धर्ममूर्ति सूरांड ए ॥ वाचकमूला कहे नातां, ऋद्धि वृद्धि is ए ॥ १ ॥ इति वृद्ध चैत्यवंदनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ सम्यक्त्वना सडशठ बोलनी सजाय प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ सुकृतवल्लिकादंबिनी, समरी सर सति मात ॥ समकित सडशत बोलनी, कहिगुं मधु रीवात ॥ १ ॥ समकित दायक गुरुतणों, पच्चवया र न थाय ॥ जव कोडाकोडें करी, करतां सर्व उपा य ॥ २ ॥ दानादिक किरिया न दिये, समकित वि ए शिवशर्म ॥ तेमाटे समकित वहूं, जाणो प्रवचन मर्म ॥ ३ ॥ दर्शन मोह विनाशथी, जे निर्मल गुण ठाण ॥ ते निश्चय समकित कह्यो, तेहनां ए यहि ठगा ॥ ४ ॥ ढाल || देइ देइ दरिसण आपणं ॥ ए देशी ॥ चन सदहणा तिलिंग बे, दशविध विनय विचारो रे ॥ त्रण शुद्धि पण दूषण, आठ प्रजाविक धारो रे ॥ ५ ॥ त्रुटक ॥ प्रजाविक घड पंच चूषण, पंच लक्षण जाणियें ॥ पट जयण पट आगार ना वन, बविहा मन आणियें ॥ पट गए समकित त या सडसठ, नेद एह उदार ए ॥ एहनुं तत्त्व वि चार करतां, लहीजें नवपार ए ॥ ६ ॥ ढाल ॥ चहु विह सद्दहणा तिहां, जीवादिक परमबो रे || प्रव चनमां जे नांखिया, लीजे तेहनो बो रे ॥ ७ ॥