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(२६१) गुंरे, वंबित फल लहे ताम रे ॥ के ॥ आशा धरी ने हुँ श्रावीयो रे, यो दरिसण महाराज रे ॥ के० ॥ ५ ॥ देशावरी संघ आवे घणा रे, यात्रा करण नि तमेव रे ॥ के० ॥ केशरना कीच मची रह्या रे, नि त होए मंगलमाल रे ॥ के० ॥ ६ ॥ गोमुख यद च केसरी रे, शासन देवता एद ॥के ॥कलियुगमा साचो धणी रे, परता पूरणहार रे ॥ के ॥ ७ ॥ शेत नरसिंहनाथाना संघमां रे, वर्ते ने जयजयकार रे ॥ के० ॥ संवत उगणीश बारोत्तरे रे, वैशाख वदि बीज सार रे । के० ॥७॥ तिणे दिन प्रनुजीने वां दिया रे, संघ सर्वे गहघट रे॥ के० ॥ पूजा साहामि वबल नित प्रतें रे, खरचीने लादो सीध रे । के ॥ ए॥ आठ दिवस.करी जातरा रे, संघ सद हर्षे ए रे ।। के० ॥ सौनाग्येउशिष्य देवचंश्ने रे, यात्रा थई सुखकार रे ॥ के० ॥ १० ॥ इति संपूर्ण ॥
॥अथ वीरजिन स्तवनं ॥ ॥ में नही जाएयो नाथजी, मोसुं दूर पठाया ॥ पीसें वर्षमान जी, शिवमेहेल सधाया ॥ में० ॥ ॥१॥ वचन तुमारो मानकें, में दीदा लीन।लो क लाज सब त्यागके, घर घर निदा कीनी ॥ में ॥ ॥ दरस तुमारो देखतो, रहेतो रंग रातो॥ व चन तुमारो शिर धरी, गुण तोरा गातो।। में ॥३॥ जिहां जिहां संशय उपजे, तो झुं पूजी लीजें ॥ ज्ञान सुधारसकी कथा, कहो कोणगुं कीजें ॥ में ॥४॥