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ए टेक ॥ रे तुम ज्ञानी जगत तात जात तुम सरन री जीएं, शरन रीजीएं तो जव इख बीजीएं । मो० ॥ १ ॥ नरप नानिजीके नंद चाहत इंद चंद विंद, जयो जयो जिणंद नित्य बंद कीजीएं || मो० ॥ २ ॥ तुम धूलेवा नाथ मोद साथ अचल यादिब्रह्म, य ही हाथ प्रभु रतनको उद्धार कीजीएं ॥ मो० ॥ ३ ॥ ॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ जाग जाग रयण गई, जोर नयो प्यारे ॥ पंच कूं प्रपंच कर, वशकर यारे ॥ जाग जाग रयण गर, जोर नयो प्यारे ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ तृपानामें मी न मरे, जोगमें मत्तंगा ॥ श्रवणमें कुरंग मरे, नयन में पतंगा ॥ जा० ॥ २ ॥ वासनामें नमर मरे, नासा रस लेतां ॥ एक एक इंडीसंग, मरे जिन केता | जा० ॥ ३ ॥ पंचके पढ्यो तुं फंद, क्युं कर वश आवे || मार तुं मन वा नूत, ज्युं निरंजन पावे ॥ जा० ॥ ४ ॥ इति संपूर्ण ॥
॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ तुं हि नाथ हमारो रे । जिनपति ॥ तूंहि नाथ हमा रो | योग देमंकर नविक सकलके, सेवक हैयामांदे धारो रे ॥ जि० ॥ तूं ॥ १ ॥ ए टेक ॥ जो गुन पाए नही सो मिलावत ॥ पाए गुनकूं सुधारो ॥ अननि राम कलिमल करो दूरें, अब मोहे पार उतारो रे ॥ जि० ॥ तूं ॥ २ ॥ त्रिभुवन नाथ सार करो मोरी, करुणा नजर निहालो || पास चिंतामण जानुचंदकी,