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तुं तखत त्रिभुवन तणो, हुं टंकशाली रूपैया ॥ दीया बाप रूपचंद शिरें, गया शिक्का लहिया || जब ० ॥ ४ ॥ ॥ अथ प्रजाति स्तवनं ॥
॥ राग वेलावल ॥ हम लोक निरंजन लालके, न रनके नांही ॥ देश वसुं मेरे नाथके, नक्ति नगरी मांही ॥ हम० ॥ १ ॥ बनज करूं प्रनु नामको, जि तनो मुख खावे ॥ सबही नाम सोढ़ा करूं, पाठो फेर न यावे ॥ हम० ॥ २ ॥ निशिदिन नाम सोदा करे, साचो सो व्यापारी ॥ हृदय कमल मंजूपमें, राखे गुण धारी ॥ हम० ॥ ३ ॥ रूपचंद कहे राम कूं, बनज दूजो न जावे ॥ नाथ निरंजन नामके, ह रखें गुण गावे ॥ हम० ॥ ४ ॥ इति
॥ अथ वीरजीन चनद सुपननुं स्तवनं ॥ ॥ राय रे सीधारथ घर पटराणी, नामें त्रिशला सु लक्षणी ए ॥ राज जुवनमांहे पलंगें पोढंतां, चन्द सु पन राणीयें लह्या ए ॥ १ ॥ पहेले रे सुपनमें गयवर दीवो, बीजे वृषन सोहामणो ए ॥ त्राजे सिंह सुलह यो दीठो, चोथे लखमी देवता ए ॥ २ ॥ पांचमे पां च वरानी माला, बहे चंद अमिय करे ए ॥ सातमे सूरज ठमे ध्वजा, नवमे कलश अमिय नयो ए ॥ ३ ॥ पद्मसरोवर दशमे दीठो, कीर समु दीठो अग्यार
॥ देव विमान ते बारमे दीठं, रणजण घंटा वाज तां ए ॥ ४ ॥ रतननो राशि ते तेरमे दीगे, अग्निशिखा दीवी चनदमे ए ॥ चनद सुपन लइ राणीजी जाग्यां,