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ड चुगल मनथी चमके || बल बि कदा केहनो न लगे, जिनराज सदा तु ज्योति जगे ॥ १८ ॥ उग ठाकुर सवि थर हर कंप, पाखंमी पण को नवि फर के || लूंटादिक सहु नामी जाए, मारग तुऊ जपतां जय थाए ॥ १९ ॥ जड मूरख जे मति होन बनी, अज्ञान तिमिर तसु नाय टली || तुज समरणथी माह्या थाये, पंमित पद पामी पूजाये ॥ २० ॥ ख स खांश खयन पीडा नासे, दुर्बल मुख दीनपणुं त्रासे ॥ गड मुंड कुष्ठ जिके सबलां, तुज कापें रोग समे सघला ॥ २१ ॥ गहिला गूगा बहिरा य जिके, तु ध्यानें गतडुख याय तिके ॥ तनु कांति कला सुविशेष वधे, तुज समरणां नवनिधि सधे ॥ २२ ॥ करि केसरी हिरण बंध सया, जल जलण जलोद रष्ट नया ॥ रांगण पमुहा सबि जाय टली, तुज ना में पामे रंग रली ॥ २३ ॥ झी ग्रह श्रीपार्श्व नमो, नमिक जपंतां ष्ट दमो में चिंतामणि मंत्र जिके ध्याये, ति घर दिन दिन दोलत थाये ॥ २४ ॥ त्रि करण शुद्धे जे राधे, तस जश कीर्ति जगमां वा धे ॥ वली कामित काम सर्वे साधे, समहित चिंता मणि तुम लाधे ॥ २५ ॥ मद मन्वर मनथी दूर त जे, जगवंत जली परें जेह नजे ॥ तसघर कमला कत्रो ल करे, वली राज्य रमणी बहु लील वरे ॥ २६ ॥ जय वारक तारक तुं त्राता, सकन मन गति मतिनो दाता ॥ मात तात सहोदर तं स्वामी, शिवदायक