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(२०१) ॥ अथ गोमी पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥राणीजीना देशमां रे ! ए देशी॥ ॥ प्राणथकी प्यारो मुने रे । साहेबा ॥ पुरुषादा पी पास ॥ प्रनुनें उलगुं रे ।' अंतरजामी आगलें रे ॥ साहेबा ॥ ननो करूं उदास ॥ प्रचु० ॥ १ ॥ मनमंदिर अंदर वस्यो रे ॥ साहेवा ॥ मुऊरो त्यो महाराज ॥ प्रनु० ॥ रहेशो जो टालो करी रे॥ साहेबा ॥ तो केम सरशे काज ॥ प्रनु० ॥२॥उनां उलगडी करुं रे ॥ साहेबा ॥ यो दरिसगनुं दान ॥प्रनु० ॥नीपट कां करीने रह्या रे ॥ साहेबा ॥ यां खो प्राडो कान ॥ प्रनु ॥३॥ श्म नानां केम टशे रे ॥ साहेबा ॥ दासथी दीनदयाल ॥प्रनु० ॥ में पालव पकड्यो खरो रे ॥ साहेबा ॥ करुणावंत कृपाल ॥.प्रनु०॥ ४ ॥ हुँतो रागी ताहेरो रे ॥ सा हेबा॥ नीरागी ने लोक ॥प्रनु० ॥ हवे तुम अम मेलावडो रे ॥ साहेबा ॥ नाव नदी संयोग ॥ प्रनु० ॥ ५॥ अकलकला कांई ताहरी रे ॥ साहेबा ॥ मुफथी तो न कलाय ॥ प्रनु० ॥ पूर्व हुं शीखवतां कला रे ॥ साहेबा ॥ मुफथी तो न शीखाय ॥ प्रनु० ॥ ६ ॥ तुं पण एक न वीसरे रे ॥ साहेबा ॥ थलप ति प्राण आधार ॥ प्रनु० ॥ मोहन कहे कवि रूप नो रे ॥ साहेबा ॥ बाशरो इणे संसार ॥ प्रनु० ॥ ७ ॥ इति गोडी पार्श्वनाथ स्तवनं ॥