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तुज गुए परम अनंत हो ॥ स०॥ देव अवरने शुं करूं ॥ सा० ॥ नेट थइ जगवंत हो ॥ स०॥२॥ तुमें बो मुकुट त्रिहुं लोकना ॥ सा० ॥ हुं तुम पगनी खेह हो ॥ स ० ॥ तुमें बो सघन तु मेहूला ॥ सा० ॥ हुं पश्चिमदिशि त्रे ह हो ॥ स० ॥ ३ ॥ नीरागी प्रनु रीऊवुं ॥ सा० ॥ ते गुण नहि मुक्रमांहि हो ॥ स० ॥ गुरु गुरुता सा हामुं जू ॥ सा० ॥ गुरुता ते सके नांहि हो ॥सु॥ ४ ॥ मोहोटासेंती बरोबरी ॥ सा० ॥ सेवकें किस विध थाय हो । स० ॥ संगो किम कीजिये ॥ ० ॥ जिहां रह्या श्रालुंनाय हो ॥ स० ॥ ५ ॥ जगगुरु क रुणा कीजियें ॥ सा० ॥ न लहो याचार विचार हो ॥ स० ॥ मुजनें जो राज निवाजशो ॥ सा० ॥ तो कुण वारणहार हो ॥ स ॥ ६ ॥ . उलग अनुभव नाव थी ॥ सा० ॥ जागो जाए सुजाण हो ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो ॥ सा० ॥ जिनजी जीवन प्राण हो । स० ॥ 9 ॥ इति ॥
॥ अथ श्री श्रेयांस जिनस्तवनं ॥ ॥ कंकण मोही रह्यो । ए देशी ॥
|| श्रेयांस जिन सुपो साहिबा रे, जिनजी दास ती अरदास || दिलडे वसी रह्यो । दूर रह्यां जाणुं नदि रे, प्रभु तुं माहरे पास || दि० ॥ १ ॥ हांरे मृगने ज्युं म धुर आलाप || दि० || मोरनें पिकलाप | दि०॥ दूर रह्या जाणुं नही रे, प्रभु तुं माहरे पास । दि० ॥ जल थलमहियल जोवतां रे ॥ जि० ॥ चिंतामणि चढ्यो