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(१७७) तिणे ढुं नलगें श्रावियो रे लो॥ तुमें पण मुझने म या करी रे लो, दीधी चरणनी चाकरी रे लो ॥ २ ॥ हुँ सेयूँ हर करी रे लो, ध्यानं तुमने दील धरी रे लो॥ साहिब साहामुं नीहालजो रेलो, नव समुथी तारजो रेलो॥३॥ अगणित गुण गणवा तणी रेलो, मुफ मन होंश धरे घणी रे लो॥ जिम नजने पाम्या पंखी रे लो, दाखे बालक करथी लखी रे लो॥४॥ जो जिन तुं ले पांशरो रेलो, करम तणो शो आशरो रे लो ॥ जो तुमें राखशो गोदमां रे लो, तो किम जागं निगोदमां रेलों ॥ ५ ॥ जब ताहरी करुणा था रे लो, कुमति कुगति दूरें गई रे लो॥ अध्यातम रवि नगीयो रेलो, पाप तिमिर किहां पूगीयो रे लो॥ ॥६॥ तुज मूरति माया जिसी रे लो, नर्वशी थइ नयरें वसी रे लो ॥ शुं जिनवादल बांहडी रेलो, रखे प्रनु टालो एक घडी रे लो ॥ ७ ॥ ताहरी नक्ति नली बनी रेलो, जिम औषधि संजीविनी रेलो॥ तन मन आणंद उपनो रे लो, कहे मोहन कवि रूपनो रे लो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ श्रीसुविधि जिनस्तवनं ॥
॥ मोतीडानी देशी॥ ॥अरज सुणो एक सुविधि जिरोसर,परम कृपानिधि तुमें परमेसर ॥ साहिबा सुग्यानी जोवो तो, वात ने मान्यानी ॥ए आंकणी॥ कहेवा पंचम चरणना धारी, किम आदंरी अश्वनी असवारी ॥सा०॥१॥