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सरिसा सरिसो संग ॥ हे गुण ॥ २ ॥ ढुंगुल वंती गोरडी || गुण० ॥ ते निर्गुण निहेजी नार ॥ हे गुण० ॥ हुं सेवक बुं राजली रे ॥ गुण ० ॥ ते साभुं न जुवे लगार ॥ हे गुण० ॥ ३ ॥ जगमां ते गुण आगली ॥ गुण० ॥ जेणे वश कीधो जरतार ॥ हे गुण० ॥ मन वैरागें वालीयुं ॥ गुण० ॥ रा जुल संजम नार ॥ हे गुंण० ॥ ४ ॥ बहेनीने मलवा जणी ॥ गुण० ॥ पीयु पेहेली तेह जाय । हे गु
० ॥ संग लइ ते नारने ॥ गुण० ॥ रही अनुभव शुं लयलाय || हे गुण० ॥ ५ ॥ समु विजय कुल चंदलो || गुण० ॥ शिवादेवी मात मलार ॥ हे गु
० ॥ वरस सहस एक यानखं ॥ गुण० ॥ सोरी पुरनो सिणगार || हे गुण ॥ ६ ॥ देह धनुष दश दीपती॥ गुण० ॥ प्रभु ब्रह्मचारी भगवंत ॥ हे गुण० ॥ राजु लवर मुने वालहो ॥ गुण ० ॥ कहे रामविजय, जयवंत ॥ हे गुण० ॥ ७ ॥ इति नेमिजिनस्तवनं ॥
॥ अथ श्री पारसनाथ जिन स्तवनं ॥
॥ ऊटणीना गीतनी देशी ॥ सेवो नविजन जिन त्रेवीशमा, लंबन नाग विख्यात ॥ जलधर सुंदर प्रभुजीनी देहडी, वामा राणीनो जात ॥ सेवो नवि जन जिन वशमा ॥ १ ॥ चिहुँ दिशें घोरघटा घनशुं मल्यो, कमतें रच्यो जलधार ॥ मुशल धारें जल वरसे घणुं, जल थल न लडुंजी पार ॥ सेवो० ॥ २ ॥ वड हेल वाहानो काउस्सग्ग रह्यो, मेरुतणी परें