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(१६४) ॥ अथ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनं ॥ ॥ हरनी हमची रे॥ए देशी ॥ यावो रे बावो रे सखी देहरे जाएं, प्रनु दरिसन करी निरमल थ एं ॥ गावो गावो रे हरख अपार, जिन गुण गरबो रे ।। तुमें पेहेरो शोल शणगार ॥ जिन गुण गरवो रे ॥ मारे लाखेणो ए वार ॥ जिन ॥ दोहेलो मानव य वतार ॥ जिन ॥ १ ॥ पदमा देवी नंदन नीको. प्रनु राय सुमित्र कुल टीको ॥ नमो नमो र एही ज नाथ ॥ जिन ॥ फोगट शी करवी वात ॥ जिन॥ कूडो लागे नेहनी लात ॥ जिन ॥२॥ कडप लंडन प्रनु पाया डे, जिन वीश धनुषनी काया वे ॥ त्री सहस वरसनु आय ॥ जिन ॥ मारे हाडे हरख न माय ॥ जिन॥ एहनी सेवाथी सुख थाय ॥ जिन ॥ मारा कुःखडां दूरें जाय ॥ जिन ॥३॥ प्रंनु श्याम वर्ण विराजे बे, मुखडं देखी विधु लाजे ने ॥ एने मोही मोही हरिनी नार ॥ जिन ॥ जे करे खंबगडां सार ॥ जिन ॥ प्रनु नयण तणे मटकार ॥ जिन ॥ तेथी लागो प्रेम अपार ॥ जिन ॥ ४ ॥ प्रनु हृदय कमलनो वासी ,शिवरमणी जेहनी दासी ॥ ढुंतो तेह तणो दास ॥ जिन ॥ मारी पूरे मन डानी अाश ॥ जिन ॥ प्रनु अविचल लीलविलास॥ जिन ॥ रामविजय कहे नन्नास ॥ जिन ॥ ५ ॥