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॥ १४ ॥ तुजविण सुरपति मधला तूसे, पण में श्रमण दूमणां ॥ ज० ॥ एक० ॥ श्रीशुनवीर हजूरें रहेतां, नवव रंग वधामणां ॥ जि० ॥ एक० ॥ ॥ १५ ॥ इति श्र। समवसरण स्तवनं ॥ संपूर्ण ॥
॥ अथ श्री सीमंधर जिन स्तवनं ॥ रुपैय्यो ते पालुं रोकडो, माहारा वाहालाजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ मनडुं ते माहारुं मोकजे, महारा वाहालाजी रे ॥ ससिहर साथै संदेश, जश्ने कहेजो महारा बालाजी रे ॥ एकणी ॥ जरतना जक्कने तारवा ॥ मा० ॥ एकवार प्रवीने या देश ॥ ज० ॥ १ ॥ प्रभुजी वसो पुष्कलावती ॥ मा० ॥ महाविदेह खेत्र मजार ॥ ज० ॥ पुरी राजे पुमरिगिली ॥ मा० ॥ जिहां प्रजुनो अवतार ॥ नइ० ॥ २ ॥ श्रीसीमंधर साहिबा ॥ मा० ॥ विचरता वीतराग ॥ ज० ॥ पडिवोहो बहु प्राणीने ॥ मा० ॥ तेहनो पामे कुण ताग ॥ ज० ॥ ३ ॥ मन जाणे कमी मनुं ॥ मा० ॥ पण पोतें नहीं पांख ॥ ज० ॥ नगवंत तुम जोवा नली ॥ मा० ॥ अलजो धरे बे बेदु ख ॥ ज० ॥ ४ ॥ दुर्गम महोटा मंगरा ॥ मा० ॥ नदी नालानो नही पा र ॥ ज० ॥ घांटीनी आंटी घणी ॥ मा० ॥ श्रटवी पंथ अपार ॥ ज० ॥ ५ ॥ कोडी सोनैये काशीदी ॥ मा० ॥ करनारो नहीं कोय | ज५० ॥ कागलीयो केम मोक लुं ॥ मा० ॥ होंश तो नित्य नवली होय ॥ ज० ॥ ६ ॥ लखं जे जे लेखमां ॥ मा० ॥ लाख गमे x
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