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( ४) कारण, कियो गुणअन्यास ए॥४॥ नरनव ारा धन सिदि साधन, सुस्त लीलविलास ए॥ निर्जरा हेतें तवन रचियु,नामें पुण्य प्रकाश ए॥५॥इति श्र! आराधना रूप पुण्य प्रकाशस्तवनं संपूर्ण॥ श्लोक १२७
॥ अथ अष्टापद तीर्थ स्तवन ॥ ॥ तीरथ अष्टापद नित नमीयें, जिहां जिनवर चो वीश जी ॥ मणिमय विंब जराव्यां जरतें, ते वंद्रं नित दीस जी ॥ ती ॥ १ ॥ निजनिज देह प्रमाणे मूरति, दीगडे मनटुं मोहे जी ॥ चत्तारि अह दश दोय इणि परें, जिनचोवीशे सोहे जी ॥ती० ॥२॥ बत्रीश कोशनो पर्वत चंचो, आठ तिहां पावडीयो जी ॥ एकेकी चनकोश प्रमाणे, नवि जाये कोई च डीयो जी॥ ती॥३॥ गौतमस्वामी चडीया लब्धे, वांद्या जिन चोवीश जी ॥ जगचिंतामणि स्तवन त्यां कीg, पूगी मननी जगीश जी ॥ ती॥४॥ तदन वमोदगामी जे मानव, ए तीरथने वांदे जी॥ जंघा विद्याचारण वांदे, तेतो लब्धिप्रसादें जी॥ ती॥ ५॥ शात सहस सुत सगर चक्रीना, ए तीरथ सेवंता जी ॥ बारमा देवलोकें ते पोहोता, लेहेशे सुख अनंतां जी ॥ ती० ॥ ६ ॥ कंचनमय प्रासाद इहां बे, वंदन करवा योग्य जी ॥ ए अधिकार ने आव श्यकसूत्रे, जो ज्यो दश् उपयोग जी ॥ ती० ॥ ७ ॥ जिहां आदोसर मुक्ते पोहोता, अविचल तीरथ एह